आंदोलन कर रहे किसान शाम होते पहुँच जाते है शराब की दुकान पर , कपड़ो में छिपा कर ले जाते हैं बोतलें...
आंदोलन कर रहे किसान शाम होते पहुँच जाते है शराब की दुकान पर , कपड़ो में छिपा कर ले जाते हैं बोतलें...
टीकरी बॉर्डर पर शाम होते ही शराब के ठेके पर भीड़ लग जाती है। ग्राहकों में ज्यादातर लोग आंदोलन में शामिल किसान हैं। इनमें युवा भी हैं और बुजुर्ग भी। लोग शराब खरीदते हैं। डिब्बा वही फेंकते हैं और बोतल को कपड़ों में रखकर अपनी ट्रॉलियों की तरफ बढ़ जाते हैं।
शाम के पांच भी नहीं बजे हैं और कुछ युवा यहीं कोल्डड्रिंक की बोतल में शराब भरकर पी रहे हैं। पास में ही एक नॉन-वेज बेचने वाले ढाबे पर भीड़ लगनी शुरू हो गई है। यहां तंदूरी चिकन के साथ शराब के पैग लगाए जा रहे हैं। ये दृश्य देखकर मन में सवाल उठता है कि आंदोलन में शामिल होने वाले लोगों का शराब पीने से क्या मतलब?
लेकिन तुरंत ही इसका जवाब भी मन में कौंधने लगता है। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में शराब पर प्रतिबंध नहीं हैं। सरकार ने ही शराब पीने की आजादी लोगों को दी है तो फिर इसमें गलत क्या? टीकरी बॉर्डर पर शराब की दुकान पर भीड़ देखकर लगता है कि धंधा अच्छा चल रहा है। लेकिन दुकानदार से पूछो तो जवाब मिलता है- धंधा मंदा चल रहा है।
दुकानदार ने बताया कि आंदोलन का कारोबार पर बड़ा असर हुआ है। कई दिन दुकान बंद भी रखनी पड़ी। कई बार किसान आंदोलनकारी ही दुकान बंद करवा देते हैं। हम उनकी बात बेझिझक मान भी लेते हैं। बिक्री के सवाल पर उसने कहा कि 30 फीसदी तक बिक्री कम हुई है। पहले आसपास की फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर भी शराब खरीदने आते थे। अब आंदोलन में शामिल लोग ही आ पा रहे हैं। सड़क बंद होने की वजह से दूसरे ग्राहक नहीं आ रहे हैं।

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